आज की सुबह के साथ समय है नमन करने का परमवीर चक्र विजेता सूबेदार जोगिंदर सिंह जी को। आज उनकी जन्मजयंती है। आज ही के दिन इस महावीर का धरती पर आगमन हुआ था।
सन् 1962 में भारत पर चीन ने कई जगह से हमला किया। ऐसा ही एक अन्य छोटा सा क्षेत्र है, जो अरुणाचल प्रदेश में चीनी सीमा से सटा हुआ है, नाम है ‘तवांग’। यूं तो यह छोटा है, पर सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सन्1962 की लड़ाई का मुख्य केंद्र रहे तवांग पर चीन आज भी अपना आधिपत्य जताता रहता है। तवांग से 50 कि. मी. ऊपर जाने पर एक जगह आती है ‘बूमला’, जहां से चीनी धरती को साफ तौर पर देखा जा सकता है। यह वास्तव में LOAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) है, जो
भारत व चीन को विभाजित करती है। सन्1962 के युद्ध में चीनी सैनिकों ने यहीं से घुसकर भारत पर धावा बोला था। यहीं पर 1 सिक्ख रेजीमेंट के जांबाज़ सैनिक सूबेदार जोगिंदर सिंह की तैनाती थी। सन्1962 की जंग में हमारे पास हथियारों व अन्य संसाधनों का ज़बरदस्त अभाव था, यहाँ भी हमें उन अभावों की कीमत चुकानी पड़ी।
23 अक्टूबर, 1962 की सुबह चीन ने यहाँ आक्रमण बोल दिया। उनकी संख्या हमारे सैनिकों के मुकाबले में काफी ज़्यादा थी, पर हमारे हौसले
बुलंद थे। लड़ते-लड़ते जब केवल 17 सैनिक शेष रह गए, तब भी सूबेदार जोगिंदर सिंह ने हौसला नहीं छोड़ा। ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के गगन भेदी नारे लगाते हुए वह आगे बढ़ते रहे ।
शरीर से कई रक्त धाराएँ बह रही थी। जाँघ पर गोली लग नामचुक चौकी को चीनियों से छुड़वा लिया, लेकिन पुनः आक्रमण झेल नहीं पाए। गोलियाँ और हथियार खत्म हो गया तो बंदूक की संगीनों से ही चीनी सैनिकों को मारते रहे और अंत में भारत माता के इस वीर सिपाही ने अपना सर्वोच्च बलिदान भारत माँ के नाम कर दिया। आज यहाँ सरदार जोगिंदर सिंह का स्मारक बना हुआ है। मैं स्वयं को
सौभाग्यशाली मानता हूँ कि इस पुण्य धरती पर मुझे नमन करने का अवसर मिल चुका है ।
ऋणी राष्ट्र कि ओर से धरती माता के शेर को शत शत नमन।
जय हिन्द